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Monday, September 20, 2021

उफ़ुक़ के उस तरफ़ कहते हैं..!

उफ़ुक़ के उस तरफ़ कहते हैं इक रंगीन वादी है
वहाँ रंगीनियाँ कोहसार के दामन में सोती हैं
गुलों की निकहतें हर चार-सू आवारा होती हैं
वहाँ नग़्मे सबा की नर्म-रौ मौजों में बहते हैं
वहाँ आब-ए-रवाँ में मस्तियों के रक़्स रहते हैं
वहाँ है एक दुनिया-ए-तरन्नुम आबशारों में
वहाँ तक़्सीम होता है तबस्सुम लाला-ज़ारों में
सुनहरी चाँद की किरनें वहाँ रातों को आती हैं
वहाँ परियाँ मोहब्बत के ख़ुदा के गीत गाती हैं
कनार-ए-आब-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ बाहम सैर करते हैं
गई-गुज़री ग़लत-फ़हमी का ज़िक्र-ए-ख़ैर करते हैं
वहाँ के रहने वालों को गुनह करना नहीं आता
ज़लील ओ मुब्तज़िल जज़्बात से डरना नहीं आता
वहाँ अहल-ए-मोहब्बत का न कोई नाम धरता है
वहाँ अहल-ए-मोहब्बत पर न कोई रश्क करता है
मोहब्बत करने वालों को वहाँ रुस्वा नहीं करते
मोहब्बत करने वालों का वहाँ चर्चा नहीं करते
हम अक्सर सोचते हैं तंग आ कर कहीं चल दें
मिरी जाँ! ऐ मिरे ख़्वाबों की दुनिया चल वहीं चल दें
उफ़ुक़ के उस तरफ़ कहते हैं इक रंगीन वादी है

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Nazir Mirza Barlas

तुम जब आओगी..!

तुम जब आओगी तो खोया हुआ पाओगी मुझे
मेरी तन्हाई में ख़्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं
मेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हें
मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं

इन किताबों ने बड़ा ज़ुल्म किया है मुझ पर
इन में इक रम्ज़ है जिस रम्ज़ का मारा हुआ ज़ेहन
मुज़्दा-ए-इशरत-ए-अंजाम नहीं पा सकता
ज़िंदगी में कभी आराम नहीं पा सकता

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Jaun Elia

તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી!!

તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી! અંતરના અમિત ઊંડાણમાં! પ્રત્યાશાઓના નૂતન અરણ્યમાં! તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી! કો વિહગ-ઝુંડ સત્વરે ઊપ...