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Monday, September 20, 2021

अब कोई नहीं आता!!

अब कोई नहीं आता!

हृदय विकल सांसें दग्ध
प्राण! मैं मरा मरा जाता
मृत प्रत्याशा को निज
अश्रुओं का फूलहार चढ़ाता
क्षण रोता क्षण विहंसता
अपने किए पर पछताता

अब कोई नहीं आता!

सांसें निंद्राधिन लेटी
निर्मिमेष नेत्र बोझिल
साध की बुझ गई  
प्यारे ललित कंदिल
मुसक्याती उलझनें
कितनी मैं सुलझाता

अब कोई नहीं आता!

चिर जीवन संगीनी
सरसिज-रंग रंगीनी
कौन डगर मुकुलित हो
तारिणी कल्याणिनी
काल खड़ा विलय-पट
दिखलाता मैं ठिठुराता

अब कोई नहीं आता!

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Rajdip Kota

Saturday, September 18, 2021

तुम कौन मेरा जीवन सजाते?

तुम कौन मेरा जीवन सजाते?

व्यथा के कारण तुम
दुःख भी तुमने दिए
निष्ठुर!मृदुल हृदय पर
तीक्ष्ण वार तुमने किए
अनेकों पीड़ा से
सुख की नींव उठाते

तुम कौन मेरा जीवन सजाते?


इस अभाव भरे 
चेतना-शून्य मन में
अंधियारे सूने
अभूत गगन में
अनंत प्रकाश सम
आते मुस्क्याते

तुम कौन मेरा जीवन सजाते?

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Rajdip Kota

Friday, September 17, 2021

मेरा जीवन तुम थें...

मेरा जीवन तुम थें जीवन-घन तुम थें
आंखों ने अगणित फ़ूल
बिछाएं हर्षित हो झूल
उस फूलों की आड़ में
तुम्हारा पथ निष्कंटक रहें
जीवन-मधु-प्याला
सदैव अक्षत अघट रहें

जीवन ऋतुराज था मधुवन तुम थे
मेरा जीवन तुम थें जीवन-घन तुम थें


व्यथा उमड़ती पारावार
मधुता लगती निस्सार
शोकाग्नि में निर्वाण हुए
हृदय-कमल सुकुमार
विकल-विरह-पथ
मुस्क्याता अनंत अपार

जीवन अवदात-गेह था आंगन तुम थें
मेरा जीवन तुम थें  जीवन-घन तुम थें

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Rajdip Kota

Saturday, August 28, 2021

ख़्वाबों के सब सुख़न...


ख़्वाबों के सब सुख़न 
बे-नाम-ओ-निशां थें
और उसमें में क्या क्या 
असरार पिन्हाँ थें

इक मर्तबा चलो 
गुज़श्तगी की सोची जाए
हम कहां से आए हैं 
हम अस्ल में कहाँ थें

मेरे पास 
ख़याल-ए-क़दम-ए-मा'शूक़ा था
और उसमें 
सद-हज़ार जहान निहाँ थें

उसके बग़ैर हम क्या थे 
कुछ नहीं थे
मिस्ल-ए-बे-ख़बर 
बे-सर-ओ-सामां थें

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Rajdip Kota

તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી!!

તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી! અંતરના અમિત ઊંડાણમાં! પ્રત્યાશાઓના નૂતન અરણ્યમાં! તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી! કો વિહગ-ઝુંડ સત્વરે ઊપ...