हृदय विकल सांसें दग्ध
प्राण! मैं मरा मरा जाता
मृत प्रत्याशा को निज
अश्रुओं का फूलहार चढ़ाता
क्षण रोता क्षण विहंसता
अपने किए पर पछताता
अब कोई नहीं आता!
सांसें निंद्राधिन लेटी
निर्मिमेष नेत्र बोझिल
साध की बुझ गई
प्यारे ललित कंदिल
मुसक्याती उलझनें
कितनी मैं सुलझाता
अब कोई नहीं आता!
चिर जीवन संगीनी
सरसिज-रंग रंगीनी
कौन डगर मुकुलित हो
तारिणी कल्याणिनी
काल खड़ा विलय-पट
दिखलाता मैं ठिठुराता
अब कोई नहीं आता!
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Rajdip Kota