Saturday, August 28, 2021

ख़्वाबों के सब सुख़न...


ख़्वाबों के सब सुख़न 
बे-नाम-ओ-निशां थें
और उसमें में क्या क्या 
असरार पिन्हाँ थें

इक मर्तबा चलो 
गुज़श्तगी की सोची जाए
हम कहां से आए हैं 
हम अस्ल में कहाँ थें

मेरे पास 
ख़याल-ए-क़दम-ए-मा'शूक़ा था
और उसमें 
सद-हज़ार जहान निहाँ थें

उसके बग़ैर हम क्या थे 
कुछ नहीं थे
मिस्ल-ए-बे-ख़बर 
बे-सर-ओ-सामां थें

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Rajdip Kota

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તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી! અંતરના અમિત ઊંડાણમાં! પ્રત્યાશાઓના નૂતન અરણ્યમાં! તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી! કો વિહગ-ઝુંડ સત્વરે ઊપ...