Saturday, October 23, 2021

તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી!!

તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી!
અંતરના અમિત ઊંડાણમાં!
પ્રત્યાશાઓના નૂતન અરણ્યમાં!
તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી!

કો વિહગ-ઝુંડ સત્વરે
ઊપરથી પસાર થાય
લાગે તું જ આવી!
કો વસંતલ-પવન-લહેરી
હૃદયને ઊંડાણે સરવા મથે
લાગે તું જ આવી!

દ્રષ્ટિ મહીં તગતગે સંધ્યાનું
છેલ્લું પ્રકાશપુંજ જે સમે
તારા દર્શન કરું છું!
અંધારી રાત્રીના ઊતુંગ 
ગેબી ભણકારોમાં
તારું રૂપ નિહાળું છું!

અંતરે કેટલા અભેદ્ય ભેદો!
એ બધાજ ભેદોમાં વણાયેલી તું!
❣️❣️

-Rajdip Kota

તું ક્યારેય અખંડ ન સાંપડી!

તું ક્યારેય અખંડ ન સાંપડી!
તારી અમલ અનુભૂતિનો પ્રવાહ ઘવાયેલો જ રહ્યો!
તારા પૂર્ણ સોંદર્યની શોધના અસ્ખલિત રહી!
મારી ભીતર જ
કોઈ ગૂઢ-ગુહાએ!
અતલ-ઊંડાણે!
અગણ્ય રહસ્ય-છળીયોના ગર્ભિત મંજુલ રવની પાંખે! 
અશ્રુ-ખચિત પાંપણની અલૌકિક ભૂમિકાએ!
તારી નજીવી ઝાંખી જોઈ!
નજીવી?હા... હા... નજીવી!
કારણ કે પ્રત્યેક સંદર્ભો પાંગળા છે!
તારી પરિભાષા માટે અક્ષમ છે!
તારા સૌંદર્ય સન્મુખ મ્લાન છે!
અને કદાચિત્ તારા સૌંદર્યે જ સુંદર પણ છે!
❣️❣️

-Rajdip kota







Monday, September 20, 2021

उफ़ुक़ के उस तरफ़ कहते हैं..!

उफ़ुक़ के उस तरफ़ कहते हैं इक रंगीन वादी है
वहाँ रंगीनियाँ कोहसार के दामन में सोती हैं
गुलों की निकहतें हर चार-सू आवारा होती हैं
वहाँ नग़्मे सबा की नर्म-रौ मौजों में बहते हैं
वहाँ आब-ए-रवाँ में मस्तियों के रक़्स रहते हैं
वहाँ है एक दुनिया-ए-तरन्नुम आबशारों में
वहाँ तक़्सीम होता है तबस्सुम लाला-ज़ारों में
सुनहरी चाँद की किरनें वहाँ रातों को आती हैं
वहाँ परियाँ मोहब्बत के ख़ुदा के गीत गाती हैं
कनार-ए-आब-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ बाहम सैर करते हैं
गई-गुज़री ग़लत-फ़हमी का ज़िक्र-ए-ख़ैर करते हैं
वहाँ के रहने वालों को गुनह करना नहीं आता
ज़लील ओ मुब्तज़िल जज़्बात से डरना नहीं आता
वहाँ अहल-ए-मोहब्बत का न कोई नाम धरता है
वहाँ अहल-ए-मोहब्बत पर न कोई रश्क करता है
मोहब्बत करने वालों को वहाँ रुस्वा नहीं करते
मोहब्बत करने वालों का वहाँ चर्चा नहीं करते
हम अक्सर सोचते हैं तंग आ कर कहीं चल दें
मिरी जाँ! ऐ मिरे ख़्वाबों की दुनिया चल वहीं चल दें
उफ़ुक़ के उस तरफ़ कहते हैं इक रंगीन वादी है

_

Nazir Mirza Barlas

अब कोई नहीं आता!!

अब कोई नहीं आता!

हृदय विकल सांसें दग्ध
प्राण! मैं मरा मरा जाता
मृत प्रत्याशा को निज
अश्रुओं का फूलहार चढ़ाता
क्षण रोता क्षण विहंसता
अपने किए पर पछताता

अब कोई नहीं आता!

सांसें निंद्राधिन लेटी
निर्मिमेष नेत्र बोझिल
साध की बुझ गई  
प्यारे ललित कंदिल
मुसक्याती उलझनें
कितनी मैं सुलझाता

अब कोई नहीं आता!

चिर जीवन संगीनी
सरसिज-रंग रंगीनी
कौन डगर मुकुलित हो
तारिणी कल्याणिनी
काल खड़ा विलय-पट
दिखलाता मैं ठिठुराता

अब कोई नहीं आता!

_

Rajdip Kota

तुम जब आओगी..!

तुम जब आओगी तो खोया हुआ पाओगी मुझे
मेरी तन्हाई में ख़्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं
मेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हें
मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं

इन किताबों ने बड़ा ज़ुल्म किया है मुझ पर
इन में इक रम्ज़ है जिस रम्ज़ का मारा हुआ ज़ेहन
मुज़्दा-ए-इशरत-ए-अंजाम नहीं पा सकता
ज़िंदगी में कभी आराम नहीं पा सकता

_

Jaun Elia

Saturday, September 18, 2021

तुम्हारे नाम तुम्हारे निशाँ से बे-सरोकार!!

तुम्हारे नाम तुम्हारे निशाँ से बे-सरोकार
तुम्हारी याद के मौसम गुज़रते जाते हैं
बस एक मन्ज़र-ए-बे-हिज्र-ओ-विसाल है जिस में
हम अपने आप ही कुछ रंग भरते जाते हैं

न वो नशात-ए-तसव्वुर कि लो तुम आ ही गए
न ज़ख़्म-ए-दिल की है सोज़िश कोई जो सहनी हो
न कोई वा'दा-ओ-पैमाँ की शाम है न सहर
न शौक़ की है कोई दास्ताँ जो कहनी हो
नहीं जो महमिल-ए-लैला-ए-आरज़ू सर-ए-राह
तो अब फ़ज़ा में फ़ज़ा के सिवा कुछ और नहीं
नहीं जो मौज-ए-सबा में कोई शमीम-ए-पयाम
तो अब सबा में सबा के सिवा कुछ और नहीं

उतार दे जो किनारे पे हम को कश्ती-ए-वहम
तो गिर्द-ओ-पेश को गिर्दाब ही समझते हैं
तुम्हारे रंग महकते हैं ख़्वाब में जब भी
तो ख़्वाब में भी उन्हें ख़्वाब ही समझते हैं

न कोई ज़ख़्म न मरहम कि ज़िंदगी अपनी
गुज़र रही है हर एहसास को गँवाने में
मगर ये ज़ख़्म ये मरहम भी कम नहीं शायद
कि हम हैं एक ज़मीं पर और इक ज़माने में

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Jaun Elia

तुम कौन मेरा जीवन सजाते?

तुम कौन मेरा जीवन सजाते?

व्यथा के कारण तुम
दुःख भी तुमने दिए
निष्ठुर!मृदुल हृदय पर
तीक्ष्ण वार तुमने किए
अनेकों पीड़ा से
सुख की नींव उठाते

तुम कौन मेरा जीवन सजाते?


इस अभाव भरे 
चेतना-शून्य मन में
अंधियारे सूने
अभूत गगन में
अनंत प्रकाश सम
आते मुस्क्याते

तुम कौन मेरा जीवन सजाते?

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Rajdip Kota

તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી!!

તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી! અંતરના અમિત ઊંડાણમાં! પ્રત્યાશાઓના નૂતન અરણ્યમાં! તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી! કો વિહગ-ઝુંડ સત્વરે ઊપ...