बे-नाम-ओ-निशां थें
और उसमें में क्या क्या
असरार पिन्हाँ थें
इक मर्तबा चलो
गुज़श्तगी की सोची जाए
हम कहां से आए हैं
हम अस्ल में कहाँ थें
मेरे पास
ख़याल-ए-क़दम-ए-मा'शूक़ा था
और उसमें
सद-हज़ार जहान निहाँ थें
उसके बग़ैर हम क्या थे
कुछ नहीं थे
मिस्ल-ए-बे-ख़बर
बे-सर-ओ-सामां थें
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Rajdip Kota