अविगत को मेरी भावनाएं
अप्रितम को मेरी कामनाएं
यदि तुम मेरे स्नेह को पहचानती
मधु-कलि आंगन में मुस्क्याती
सरसिज-रस जीवन में घुल जाता
बसंती जोड़े में ऋतुराज झूम आता
लेकीन मेरी कल्प्यता को यथार्थ का सा
कोई ठौर मिल न सका
रंज हैं मुझे कि इक भी मधु-पुष्प
जीवन-बगिया में खिल न सका
एक अनजाना भाव मेरी कामना हैं
जो अनजाना हैं बिल्कुल अनजाना हैं
उसकी प्रत्याशा आंखों में सजाए निशी-दिन
मुझको पागलपन का खेल रचाना हैं
तुम नहीं तो अब उस भाव को
याद करके जीवन काट लूंगा
स्नेह-मुद्राएं जो मिली हैं तुमसे
समस्त विश्व में बाट दूंगा
प्रिय! इस बार तुम मेरा गंतव्य स्थान नहीं हों
देह के लिए सुजान नहीं हो मेरा मान नहीं हों
अनदेखे अपरिमित भाव-विश्व को मेरी शत
प्रार्थनाएं
अविगत को मेरी भावनाएं अप्रतिम को मेरी
कामनाएं
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Rajdip Kota
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