Friday, September 17, 2021

अविगत को मेरी भावनाएं!!


अविगत को मेरी भावनाएं 

अप्रितम को मेरी कामनाएं


यदि तुम मेरे स्नेह को पहचानती

मधु-कलि आंगन में मुस्क्याती

सरसिज-रस जीवन में घुल जाता

बसंती जोड़े में ऋतुराज झूम आता

लेकीन मेरी कल्प्यता को यथार्थ का सा

कोई ठौर मिल न सका

रंज हैं मुझे कि इक भी मधु-पुष्प 

जीवन-बगिया में खिल न सका


एक अनजाना भाव मेरी कामना हैं

जो अनजाना हैं बिल्कुल अनजाना हैं

उसकी प्रत्याशा आंखों में सजाए निशी-दिन 

मुझको पागलपन का खेल रचाना हैं


तुम नहीं तो अब उस भाव को

याद करके जीवन काट लूंगा

स्नेह-मुद्राएं जो मिली हैं तुमसे

समस्त विश्व में बाट दूंगा


प्रिय! इस बार तुम मेरा गंतव्य स्थान नहीं हों

देह के लिए सुजान नहीं हो मेरा मान नहीं हों


अनदेखे अपरिमित भाव-विश्व को मेरी शत 

प्रार्थनाएं

अविगत को मेरी भावनाएं अप्रतिम को मेरी 

कामनाएं

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Rajdip Kota

मेरा जीवन तुम थें...

मेरा जीवन तुम थें जीवन-घन तुम थें
आंखों ने अगणित फ़ूल
बिछाएं हर्षित हो झूल
उस फूलों की आड़ में
तुम्हारा पथ निष्कंटक रहें
जीवन-मधु-प्याला
सदैव अक्षत अघट रहें

जीवन ऋतुराज था मधुवन तुम थे
मेरा जीवन तुम थें जीवन-घन तुम थें


व्यथा उमड़ती पारावार
मधुता लगती निस्सार
शोकाग्नि में निर्वाण हुए
हृदय-कमल सुकुमार
विकल-विरह-पथ
मुस्क्याता अनंत अपार

जीवन अवदात-गेह था आंगन तुम थें
मेरा जीवन तुम थें  जीवन-घन तुम थें

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Rajdip Kota

Thursday, September 9, 2021

वह जा चुकी है!!

(वह जा चुकी है)

किसे ढूंढती हैं तुम्हारी नज़र
इतनी बेताबी-ए-दिल क्यूं
क्यूं जलाएं चराग़-ए-उम्मीद
जब कि तुम्हें मालूम था
इसका कुछ मोल नहीं मिलने वाला
जहान-ए-तसव्वुर का मुरझाया हुआ इक गुंचा
मेहनत-ओ-मशक़्क़त के बाद भी नहीं खिलने वाला
क्यूं उस बे-वफ़ा को बारहा याद करके
अपने दिल को बे-इंतिहा आज़ुर्दा करते हों
तुम्हें पता था
रिफ़ाकत की इब्तिदा से पता था
आफ़त-नसीब दिल को 
उसके गुदाज़-बदन की नर्मी हासिल नहीं
खुलूश तो ये कि इस आलम-ए-दराज़ में 
कोई भी अफ़साना-ए-दिल कामिल नहीं
अहल-ए-दिल की ज़ुबानी कौन सुनता हैं
सब अपने ही किसी अमल तक महदूद हैं
इसी तंग-खयाल से बहर-हाल हिरासां हूं
उनसे दूर मेरा इमरोज़-ओ-फर्दा क्या होगा।
अब इक क़लील-ओ-तवील सफ़र तै करना हैं
उसके बगैर 
उसने दूर
वक्त ने आख़िर सुना दिया अपना अहवाल
मेरे मुकद्दर में कहीं भी उसका नाम-हो-निशान नहीं
मैं जिसके लम्स को पाने बेचैन था
वो मेरा भरम था
जो टूट चुका हैं

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Rajdip Kota




Saturday, August 28, 2021

ख़्वाबों के सब सुख़न...


ख़्वाबों के सब सुख़न 
बे-नाम-ओ-निशां थें
और उसमें में क्या क्या 
असरार पिन्हाँ थें

इक मर्तबा चलो 
गुज़श्तगी की सोची जाए
हम कहां से आए हैं 
हम अस्ल में कहाँ थें

मेरे पास 
ख़याल-ए-क़दम-ए-मा'शूक़ा था
और उसमें 
सद-हज़ार जहान निहाँ थें

उसके बग़ैर हम क्या थे 
कुछ नहीं थे
मिस्ल-ए-बे-ख़बर 
बे-सर-ओ-सामां थें

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Rajdip Kota

Thursday, August 26, 2021

तेरी ना-मर्ज़ी के बा-वस्फ़...


तेरी ना-मर्ज़ी के बा-वस्फ़ 
तुझे चाहा भूल हुई
तिरे लहराते काकुल को 
संवारा भूल हुई

तेरी यादों में खोकर 
अज़ीम ख़्वाब सँजोकर 
ज़िस्त को बे-सर-ओ-पा 
बनाया भूल हुई

दिन का ख़याल न 
सियाह रात से बवाल
बा-तरतीव तुझे सोचा 
किया भूल हुई

तिरे चरन की कामना 
तेरी सूरत से सामना
तेरी तलब में ज़ात को 
मिटाया भूल हुई

नूर-ए-माह से चुराकर 
फूलों से सजाकर
मैंने तुझको ख़ाना-ए-दिल में 
बिठाया भूल हुई

बहर-ए-इश्क़ अज़ीब था 
वहीं मेरा नसीब था
किश्ती को जानिब-ए-साहिल 
खिसकाया भूल हुई

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Rajdip Kota

તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી!!

તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી! અંતરના અમિત ઊંડાણમાં! પ્રત્યાશાઓના નૂતન અરણ્યમાં! તને મૈં ક્યાં ક્યાં ન ખોળી! કો વિહગ-ઝુંડ સત્વરે ઊપ...